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NEW WORLD ORDER BY SANATAN DHARMA / BRAHMARISHI(सनातन धर्म के ब्रह्मर्षि रचित नयी विश्व व्यवस्था)

 

 

 

 

 




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অমর জগতে আপনাকে স্বাগত জানাই

दुनिया के हर समस्याओं के समाधान के लिए

अमर दुनिया में आपका स्वागत है

जातिभेद, धर्मभेद से मुक्त मैत्रीपूर्ण अमर दुनिया में आपका स्वागत है

Welcome for all solutions to immortal World

मृत्युयापन से जीवनयापन की ओर-

विज्ञान की दुनिया से प्रज्ञान की दुनिया की ओर-

मृत्युलोक से अमरलोक की ओर-

दुनिया में एक ही हमारा उपाय (प्रज्ञान सिद्धान्त)है जो मानव सभ्यता के हर समस्याओं का समाधान कराने धर्मभेद एवं जातिभेद से मुक्त पूर्णता एवं संपूर्णता को प्राप्त कराने, अमरता प्राप्त कराने एवं स्वर्गमय जीवन प्राप्त कराने में समर्थ है  

दुनिया के रचना बाद से ही मृत्युयापन विधि प्रचलित रहने के कारण हर मानव को मरना अनिवार्य रहा है। इसीलिए इसे मृत्युलोक कहा जाता रहा है। सृष्टि, स्थिति एवं विनाश प्रकृति का स्वभाव है। लेकिन हमारे अनुसंधान में प्रकृति के अंदर में बिराजमान है चेतन सत्ता जो की अजर, अमर एवं नित्य है। अगर हम इनके सहारे अपना जीवन निर्वाह करे तो हमारे लिए मृत्यु की अनिवार्यता क्षतम हो जाती है। हम अनंत काल तक जीवनयापन कर सकते है। मृत्यु की समस्या क्षतम होने के बाद भी रोग एवं बुढ़ापा का संकट बना रहता है। लेकिन इसे हम योगमय जीवनयापन करे तो इसका भी समाधान हो जाएगा। योग एवं योगा दोनों अलग अलग है एक नहीं है। योग है जीवन व्यवस्था लेकिन योगा है आरोग्य व्यवस्था।

हमारे इस विधि के द्वारा विशुद्ध प्राकृतिक उपाय से सम्पूर्ण विश्व के हर समस्याओं (अमानवता, दिमागी अधूरापन, दिमागी दूषण, जन संख्या वृद्धि, प्राकृतिक असंतुलन एवं दूषण ) का समाधान अनिवार्य रूपसे किया जा सकता है।

इसके लिए जरूरत है दुनिया हर व्याक्ति को इस संवाद एवं उपाय व विधि से अवगत कराना। ताकि हर व्याक्ति प्रकृति की अनुकंपा "स्वभाव" से ऊपर उठकर परमात्मा की अनुकंपा "धर्म" को धारण कर सके। अत: हर धर्म, पंथ, जाति एवं देश के हर व्याक्ति से निवेदन है की इस संवाद को जन जन तक पौहुचाने का कष्ट करे। ताकि वर्तमान एवं आनेवाली हर संकट एवं विनाश से हमारी मानवसभ्यता को बंचाया जा सके, अमर बनाया जा सके।

चरम विकास को प्राप्त करने के बाद जीतने भी विकसित मानव सभ्यता विनाश हो चुके है। इसका एक ही कारण रहा है अप्राकृतिक जीवनयापन, या मृत्युयापन, या अप्राकृतिक विकास। अत: हमारी सभ्यता को बचाने के लिए हमे विशुद्ध प्राकृतिक जीवन अपनाना पड़ेगा। इसे ही हम प्राकृतिक जीवनयापन व्यवस्था कहते है। अत: मृत्युयापन व्यवस्था को छोड़कर अब जीवनयापन व्यवस्था को आपनाए।

दुनिया के सभी सरकारी, बेसरकारी एवं धार्मिक नेताओं, गुरुओं, वैज्ञानिकों, बुद्धिजीवियों से निवेदन है की -

हमारे सिद्धान्त को समझने, अपनाने एवं सहयोग करने की कोशिश करें। क्यौंकी विनाश का तांडव आरंभ हो चुका है। इसका दो प्रमुख कारण है अंतराष्ट्रीय स्तर पर योगा एवं mRNA टीकाकरण। इन दोनों से दुनिया के 50 से 60 प्रतिशत आबादी का अप्राकृतिकरण हो जाएगा। इससे जीवनीय स्तर क्षतिग्रस्त एवं असंतुलित हो जाएगा। जो की प्राकृतिक चरम विकृति का कारण होगा। इससे प्रकृति के सभी स्तर असंतुलित हो जाएगा। यह जीव जगत के लिए घातक साबित होगा।

अत: हमारी इस चरम विकसित मानवसभ्यता को बचाने में सक्षम जीवनयापन पद्धति को रेजिस्ट्रेशन करके ही जानने का कष्ट करे। ताकि अवैध लोगों से अपने को सुरक्षित कर सकें। यह जीवनयापन पद्धति प्रवृत्ति मार्गी एवं निवृत्ति मार्गी दोनों के लिए अव्यर्थ फल दायक सिद्ध होगा।

हमारा लक्ष्य है हर मानव पूर्णता अर्थात मन, मेधा, धृति, स्मृति, बुद्धि, विचार, विवेक ज्ञान ग्रंथि का शतप्रतिशत विकास को प्राप्त कर "पूर्णविकसित मानव" बन सके। और पूर्णविकसित मानव मानवता का सम्पूर्ण विकास अर्थात महामानवत्व, देवत्व, भगवत्व, ईश्वरत्व, महेश्वरत्व, सर्वेश्वरत्व, सार्वभौमत्व, परमात्मात्व को प्राप्त कर सके।

जीवनयापन पद्धति को निष्ठा एवं दृढ़ता से अपनाने से दिमाग एवं आयु क्रमश बृद्धि होती रहेगी। आत्मा दर्शन एवं स्थिति के बाद मृत्यु की अनिवार्यता ही क्षतम हो जाती है।

सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए रेजिस्ट्रेशन करके हासिल करें।



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